कर्ण
कर्ण
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राधा का लाडला
कुंती का पुत्र
कुछ नही बिघाड सकता
उसका तीर या धनुष्य
शरीर पे कवच
कान मे कुंडल
शरीर उसका अभेद्य
तेज उसका था जैसा
सूर्य का मुख मंडल
हारना ना था जानता
जीत उसके स्वभाव मे
जो रेहता संग उसके
पडता प्रेम मे
दान करके निःस्वार्थ से
बना जग मे अकेला दानवीर वो
मरते समय दान करके
बना महावीर महारथी वो
ना मिला माँ का प्रेम
ना मिला मान कभी
होकर निपुण सब मैं
सहा फिर भी अपमान ही।