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Sania Zahra

Romance

4.9  

Sania Zahra

Romance

कल ख़्वाब में देखा था तुमको !

कल ख़्वाब में देखा था तुमको !

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कल खुवाब मे देखा था तुमको,

तुम दिलकश दिलकश लगते थे,

और उस पर तम्हारे नयन चंचल,

तारों कि तरह चमकते थे,


घनघोर घाटा नभ पर जैसे,

मोहित मोहित लगती है,

पेशानी पर बाल तम्हारे,

कुछ वैसे से ही बिखरे थे,


नौरस ग़ुंचे हों जैसे,

हाय लब तम्हारे वैसे थे,

संयत उर अधीर किया था,

तुम ऐसे कुछ मुस्काये थे,


खुद को मेरे नेत्र-दर्पण मे,

तुम देख ज़रा इठलाये थे,

कोई सुप्त इच्छा सजक करने,

तुम पास हमारे आये थे,


मेरे हिर्दय को विक्षिप्त किया था,

जब मनोरम नेत्र मिलाये थे,

विचिलित उर श्वास अधीर,

हम आहें यूँ ही भरते थे,


बिन मदिरापान के हम उन्मत्त,

तुम कुछ ऐसे ही दिखते थे,

तेरा मनमोहक सा ललित सा मुख,

हम सारी रात तकते थे,


बस अब पासे-अदब है ज़हरा,

हम इसके आगे ना लिखते हैं !


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