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swathi magendran

Abstract

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swathi magendran

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खुद को हार रही हूँ

खुद को हार रही हूँ

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दिल और दिमाग़ की लड़ाई में,

ख़ुद को ही हारती जा रही हूँ।


बिन मंज़िल के रास्ते पे,

अकेले चलती जा रही हूँ।


दिल को है तुमसे मोहब्बत और

दिमाग को इससे एतराज़।


आँखें मीचे अंधियारों के घुटन में,

चीख़ चीख़ के रोती जा रही हूँ।


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