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Sagar Ruparel

Abstract Classics

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Sagar Ruparel

Abstract Classics

ख़त

ख़त

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एक अरसेबाद था एक खत आया।

तार के जरिये था मानो दिल का तार जुड गया l

मोबाइल के जमाने मे खत ?

धत्त

 

शायद बात कुछ ठोस होगी।

वरना बेवजह यूँ

फासले तय कर,

दरवाज़े से झुक कर,

सिहाई नही आती कागज़ में लिपट कर।

 

क्या बात होगी मगर?

 

न message, न whatsapp।

न call न voice chat।

शायद हाँ, शायद इसीको कहते हैं generation gap।

 

खुशबू खत की अर्सों बाद महसूस होरही थी,

गुन्हेगार जमाना था या हम पता नही।

 

मगर पता मेरा पूछ कर आया था खत।

शायद मेरी कोई इल्तजा रही होगी,

जो आज कामिल होगयी ।

 

मैं, निहारता रहा वो खत।

उसकी खुशबू से पुरानी यादें फिर महक उठी।

भूली बिसरी सी यादों में जो दबी लालटेन थी

वो फिर जगमगा उठी।

 

यादों के नगर की सैर कर आया ये खत,

रुखिसि इन प्लखों को फिर भिगो रहा था।

 

स्थिर थे ये हाथ मेरे आजतक मगर,

कमज़ोर पड़ गए येजब मैंने हाथ फेरा उस खत पर।

 

लिफाफे से निकल कर रूबरू जब हुआ खत मुझसे,

पूछ बैठा एक सवाल, “के मेरा क्या रिश्ता है तुझसे ?”

 

अब क्या कहें,

के क्या रिश्ता है ? 

तू वो पानी है,

जो दिलों को सींचता है 

तू वो डोर है,

जो फ़ासलों को रिशतों से जोड़ता है।

 

तू कम बोलता है मगर,

दिल को छू जाता है।

उस whatsapp message की तरह नहीं,

जो भीड़ में खो सा जाता हैं।

 

तू वो जज़बात है जो नज़र नही आता।

तेरा रंग ही है जो सब कुछ है कह जाता।

 

लाल सिहाई में भीग कर जो तू आया।

सब समझ जाते है

के कोई बुरी खबर है तू लाया। 

नीले सिहाई में नीले अम्बर सा झूम कर जब जब तू आया,

हर किसी के सूटकेस में, कपडों के नीचे,

आज भी महफूज़ नज़र तू आया।

 

गुफ़्तगू चली कुछ यूं थोड़ी देर खत के साथ,

और फिर मैंने उसे गले से लगाया,

उंगलियों से खोलते हुए,

मैंने उस खत को फिर सहलाया।

 

उम्मीद यही थी कि नीले रंग से रंगा खत होगा,

मगर बात अजब सी थी

खत कोरा था,

सिहाई का न नमो निशां था।

 

लिफाफा पलट कर नाम जब पढ़ा,

तोह हाथ मेरे थरथरा उठे,

एक लहर आंसू की आंखों पर सवार होगईl

कोरे से उस खत में बहुत कुछ लिखा था

हां, बहुत कुछ।

लिखने वाले ने सिहाई संझोकर रखी थी

और पढ़नेवाले ने जज़बात।


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