खास और आस
खास और आस


मंजिल ढूंढता राही
चला जा रहा किस ओर है?
मंजिल की चाह में तू
चल रहा किस ओर है?
बैठ कुछ पल राह में,
मत छटपटा अनजानी चाह में
पूछ खुद से ये प्रश्न,
क्या बल है तेरी इस बाह में?
तू जान ले, तू पहचान ले
कि क्या है तेरा सक्षम हुनर
झांक के अपने अंदर
पायेगा तू उसे, रख सबर
क्या "खास" तुझ में
क्या "आस" तुझ में
कर अलग दोनो को
तू अभी इस पल में
मंजिल तुझे दिख जाएगी,
आसान तेरी राह हो जाएगी
इस "खास" का और
"आस" का अंतर ही
तुझे तेरी मंजिल तक पहुंचाएगी।।