STORYMIRROR

kamal awasthi

Abstract

3  

kamal awasthi

Abstract

ख़ामोशी

ख़ामोशी

1 min
12.2K

चीखती ख़ामोशी को सुना है मैंने,

आज उसको गले लगाने का मन करता है।

चलो अब बहुत हुआ ये सुनना सुनाना

आज चुप चाप हो जाने का मन करता है।


दिल की दीवारों को चीर कर निकलती

आवाज़ को,

आज फिर डरा कर दबाने का मन करता है।

बहुत बोला तुमने बेवजह बुरा - भला सही,

आज फिर खामोश सोने का मन करता है।


शोर से ज़्यादा ज़ोर तो इस खामोशी में है

इसे अपनी ढाल बनाने का मन करता है।

चलो अब बहुत हुआ ये सुनना सुनाना,

फिर चुप चाप हो जाने का मन करता है।,



Rate this content
Log in

More hindi poem from kamal awasthi

Similar hindi poem from Abstract