कदम बड़ाते चलो
कदम बड़ाते चलो
न अनुकंपा की मांग करो
न तनिक क्षणिक विराम करो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
मंजिल का क्या है आएगी
वह कदम चूमकर जाएगी
पर्वत से स्वयं विराट बनो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
बाधाएं भड़की ज्वाला हो
औ' पथ कंटक वाला हो
कर्म निरत तुम करे रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
क्या मनुज नहीं है कर पाया
जब भुजबल उसने अपनाया
भूमि पर स्वर्ग बनाया है
अनंत को चीर दिखाया है
नित कदमों में वेग भरो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
दुर्गम को सुगम कर कर बैठे
निज मन में शक्ति प्रखर बैठे
कायर हैं पंथ बदल लेते
ढाल भाग्य को कर लेते
कुछ भाग्य नहीं है वीरों का
तूफान है वेग समीरों का
पवन को अपनी ध्वजा करो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
माना है शेष समर अब भी
पर देख जीत है समक्ष खड़ी
न मान हार पद पीछे ले
तू बढ़ा कदम तो विजय मिले
प्रतीक्षा मंजिल को पद आहट की
मिली उसे जो पथ से नहीं डिगा
अपने मन में केवल विश्वास धरो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो
तुम कदम बढ़ाते चले रहो।