कौन थी वो...
कौन थी वो...
मन का टुकड़ा जब ये पूछे,
वो कौन थी, उसका नाम था क्या?
समझा देना, कोई ख़ास नहीं।
ऐसी उसमे कोई बात नहीं।
सपने जैसे खुल जाती थी
हर्फ़ों जैसी धुल जाती थी
खारे जल में घुल जाती थी
खुद का जिसको एहसास नहीं
ऐसे ही बस, कोई ख़ास नहीं।
बदरी जैसे रो जाती थी
बिल्ली जैसे सो जाती थी
गुड़िया जैसी बेहिस थी वो
सब दूर थे, उसके पास नहीं
ऐसे ही थी, कोई ख़ास नहीं।
वो एक कहानी टूटी सी
बच्चों जैसी थी, रूठी सी
बस एक कहानी झूठी सी
सच की उस में कोई बात नहीं
ऐसे ही थी, कोई ख़ास नहीं।