कौन कहता है स्त्री पुरुष के समान है
कौन कहता है स्त्री पुरुष के समान है


कौन कहता है स्त्री पुरुष के समान है,
अरे आप कहते हैं कि स्त्री पुरुष के समान है,
कैसे हो सकती है,
सोचा है क्या कभी ?
सुनने में अच्छी लगती हैं ये बातें,
सुनने में अच्छी लगती हैं ये बातें,
एक झूठा विश्वास दिलाती है ये बातें,
पर एक स्त्री पुरुष के समान है, यह कैसे संभव है।
कौन कहता है स्त्री पुरुष के समान है,
अरे आप कहते है स्त्री पुरुष के समान है।
आज स्त्री घर के साथ बाहर भी जाती है,
तो क्या वह घर को घर नहीं समझती,
आज स्त्री घर के साथ बाहर भी जाती है,
तो क्या वह घर को घर नहीं समझती,
समझती है,
काम करते करते जाती है घर की
चिंता साथ ले जाती है,
काम करते करते ही जाती है
घर की चिंता साथ ले जाती है,
घर आते भी सोचते हुए आती है,
बच्चों को देखना है,
खाना बनाना है,
होमेवोर्क करवाना है,
कल की तैयारी देखनी है,
माँ बाबा की दवाई रखनी है,
कितनी ही रोज़ की जिम्मेदारियां हैं,
क्या वह उनसे मुक्त है ?
क्या वह उनसे मुक्त है ?
नहीं,
कभी आवाज़ उठाती है कि वो ही क्यों,
कभी आवाज़ उठाती है कि वो ही क्यों,
तो सुनने को मिलता है,
यह तो फ़र्ज हैं तुम्हारा,
कभी आवाज़ उठाती है कि वो ही क्यों,
वो तो सुनने को मिलता है,
यह तो फ़र्ज हैं तुम्हारा,
अगर यह मेरा ही फ़र्ज है,
तो मैं काम पर क्यों जाती हूँ,
अगर यह मेरा ही फ़र्ज है,
तो मैं काम पर क्यों जाती हूँ,
घर खर्च में मिलकर मैं तुम्हारा हाथ क्यों बटाती हूँ।
इन सब के साथ कुछ ऐसा भी सुनती हूँ,
आज कल फोन पर ज़्यादा रहने लगी हो,
क्या कोई और है,
आज कल फोन पे ज़्यादा रहने लगी हो,
क्या कोई और है,
आज कल ज़्यादा सज सवरने लगी हो,
क्या बात है ?
स्त्री चाहे कुछ भी करे या ना करे,
स्त्री चाहे कुछ भी करे या न करे,
श़क के घेरे में हमेशा खड़ी पाती है,
और अपने से पूछती है,
क्या घर के बाहर सब अच्छा है,
और अपने से पूछती है,
क्या घर के बाहर सब अच्छा है।
और अपने से पूछती है,
क्या घर के बाहर सब अच्छा है।
नहीं, अगर कुछ ग़लत हो गया
या कुछ काम देर से हुआ,
तो फिर वही बात,
एक स्त्री पुरुष के समान कैसे हो सकती है।
अगर कुछ ग़लत हो गया या कुछ देर से हुआ,
तो फिर वही बात,
एक स्त्री पुरुष के समान कैसे हो सकती है।
व्यंग कसा जाता है, स्त्री की क़ाबिलीयत पर,
व्यंग कसा जाता है, स्त्री के आत्मनिभरता पर,
पर वह तो आत्मविश्वास से भरी है,
डगमगाती तो है, पर वह फिर संभाल जाती है,
पर वह तो आत्मविश्वास से भरी है,
डगमगाती तो है, पर वह फिर संभाल जाती है,
यह सब बातें उसके लिए ढाल है,
वह कभी ना खुद हारी है,
न हारेगी,
यह सब बातें उसके लिए ढाल है,
वह कभी ना खुद हारी है, न हारेगी,
पर समाज और परिवारों के इन प्रश्नो का,
कब तक जवाब देती जाएगी,
न जाने किस मिट्टी की मूरत है यह,
न जाने किस मिट्टी की मूरत है यह,
सब सुनती है फिर अपने बच्चों की तरफ़ देखती है,
मुस्कुराते हुए आँसू पोंछती है,
फिर अपने फर्ज निभाने में लग जाती है,
और आप कहते है कि स्त्री पुरुष के समान है।
और आप कहते है कि स्त्री पुरुष के समान है।
पर कैसे हो सकती है,
क्या सोचा है कभी आपने,
कौन कहता है, कौन कहता है
स्त्री पुरुष के समान है।