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Sudeshna Samanta

Abstract

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Sudeshna Samanta

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कौन हो तुम !!

कौन हो तुम !!

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कौन हो तुम ?

मेरी स्वास, मेरे हृदय का स्पंदन हो तुम

मेरे प्राण, मेरी आत्मा का बंधन हो तुम। 


कौन हो तुम ?

मेरा प्रतिबिम्ब, मेरा अक्स हो तुम

मेरी सोच, मेरे विचारों का सारांश हो तुम। 


कौन हो तुम ?

भावनाओं के भँवर में, मेरे संयम का पतवार हो तुम

निस्तब्धता में बजती, उमंग की सुरीली तान हो तुम। 


कौन हो तुम ?

जीवन के ज्वार -भाटे में स्थिरता का प्रतीक हो तुम

विवादों के बवंडर में, चमकती तलवार हो तुम। 


कौन हो तुम ?

तम में खोये राही का, मार्गदर्शी जुगनू हो तुम

एकांत की पीड़ा में, अपनत्व का स्पर्श हो तुम। 


कौन हो तुम ?

मेरी अभिव्यक्ति, मेरी मुक्ति का अभिप्राय हो तुम 

जकड़ी विचारो को उन्मुक्त कर दे,उस शक्ति का श्रोत हो तुम। 


कौन हो तुम ?

थोड़ी स्याही, एक नोक, एक रंग का मेल हो तुम

कागज की संगी, मेरी उत्प्रेरणा हो तुम। 


कौन हो तुम ?

मेरा शस्त्र, मेरा सिद्धांत हो तुम

मेरी आकृति, मेरी कलम हो तुम, मेरी कलम हो तुम। 


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