काश
काश
काश! मैंने उस दिन थोड़ा तो सोचा होता...
अपनी जिंदगी को किसी और को ना सौंपा होता।
उस दिन लोगों ने मुझे बहुत समझाया था,
मुझे जन्नत जैसी खुशियोँ का सपना दिखाया था।
लेकिन मेरा दिल था अभी भी बच्चा,
इसलिए ही शायद था कान का कच्चा।
खैर ,अंत में मैंने सभी की बातें मानी,
परंतु अभी भी कुछ बातें, नहींं थी जानी।
उस दिन लगा कि मेरी जिंदगी में सब कुछ पूरा है,
लेकिन फिर दिल से एक आवाज आई,
नहींं ,अभी भी कुछ तो अधूरा है।
उस दिन के बाद जिंदगी में जान तो है,
लेकिन पहचान नहीं है।
हालत है कि मानों, चाबी है लेकिन खोल नहीं सकती,
किसी को अपने अहसास बोल नहींं सकती।
जिंदगी की इस दौड में कहाॅं खो गई मैं,
आख़िर इतनी गुम कब हो गई मैं।
काश! वो दिन कभी ना आया होता,
मैंने भी अपनी जिंदगी को थोड़ा आजमाया होता।
तो आज मैं ना होती किसी पे निर्भर,
ना होता मुझे किसी का डर।
अपनी पहचान से अनजान ना होती,
शायद मेरी जिंदगी में भी जान होती।
अब दिल से आती है एक आवाज,
काश! ये दुनिया बदल जाए,
मुझे वो दिन फिर से मिल जाए।।
