जन्म - मृत्यु
जन्म - मृत्यु
हां !
इसी जन्म में
मेरी मृत्यु
कई बार हुई है
और हर बार
मैंने फिर से जन्म लिया है।
मुझे अपनी पहचान को
बनाने से पहले
किसी खूँटे से बांध
मार डाला गया
मेरा बेजान शरीर
आत्मा ढूंढने का
अथक प्रयास करता रहा।
और फिर
एक दिन
मेरा पुनर्जन्म हुआ
हंसती - खेलती ज़िन्दगी का
जब मेरी कोख से आगमन हुआ।
मैं मुस्कुराई
और अपनी हर मुस्कुराहट को
उस नन्हीं जान पर
छिड़कती रही पर
उस दिन मैं फिर से मारी गई
जब बेटे की चाह में
बेटियों के होते
मुझे बांझ कहा गया।
जहाँ सूर्योदय न हो
वैसे जीवन का
मुझे सांझ कहा गया
पर मैं फिर मुस्कुराई
और अपनी मुस्कुराहटों को समेटे
निकल पड़ी
एक ऐसा जन्म लेने
जहाँ ज़िन्दगी जीने के लिए
बार - बार मृत्यु का वरण
न करना पड़े।
