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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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जिंदगी

जिंदगी

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जिंदगी व्यस्त नहीं

अस्त व्यस्त हो गई है,

जिंदगी जिंदगी न रही

मशीन बन गई है।


यह कैसा समय आ गया है

घर, परिवार, समाज, रिश्तेदार की

अजी बात छोड़िए,

आदमी खुद के लिए भी

समय नहीं निकाल पा रहा।


ऐसा लगता है कि हम ठहरे

अपने लिए समय निकाल

तनिक अपने ख्याल में

समय गँवाया तो 

जैसे भूचाल आ जायेगा,

मेरी ही नहीं मेरे साथ साथ

परिवार का भी जीवन 

तबाह हो जायेगा।


हर समय बस भागमभाग मचा है,

जैसे हमारे जीवन के हर हिस्से में

कोई युद्ध हो रहा है,

हम जरा सा चूके तो

सब खत्म हो जायेगा,

हमारी जिंदगी में जीने लायक

कुछ भी नहीं बच पायेगा।


हर किसी को देखिए

लग रहा लोग जी नहीं रहे हैं

जिंदगी जीने से ज्यादा

जिंदगी की भीख मांग रहे हैं,

अपने को अस्त व्यस्त रखकर

जैसे तैसे जिंदगी के दिन पूरे कर रहे हैं,

और बनावटी हंसी के साथ

जिंदगी जीने का नाटक कर रहे हैं।


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