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Atanu Dey

Abstract

4.4  

Atanu Dey

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जिंदगी

जिंदगी

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ज़िन्दगी तू क्यों रोता है..

ग़म का इये बादल काहा हमेशा ठहरने वाला है

ख़ुशियों का एक हवा फिर से उड़ेगा

बादलों को चीरते हुए रौशनी फिर लाएगा 


जो है ख्वाब आँखों में तेरे उसे खोने न दे तू 

हाथ बढ़ा बढ़ आगे उसे चुने तू 

मुश्किलों के पहाड़ कितने भी ऊंचे हो 

तेरे चाहत के जज़्बात से ज्यादा नहीं 

ज़िन्दगी तू क्यों रोता है 


ज़िन्दगी के भाग दौर में ज़िन्दगी पीछे रह गयी 

आगे बहोत निकल आये हम अपने पीछे रह गए 

जब मुड़के देखता हूँ उन लम्हों को

मैं तो मन ही मुस्कराते हैं हम 


सोचता हूँ कैसे वापस लाये उन्हें ज़िन्दगी में 

ज़िन्दगी मुस्कुराती हुई मुझपे, मुझसे कहती है 

जो चला जाये वो पल कल है वापस न होगी वो 

जी ले जो आज है 

बना एक अपना सा कल 


मुश्किलों के आगे हार मन लेना बुस्दिली है 

सर झुकाके जीत काहा मिली है 

सिवाए प्यार के आगे 

ज़िन्दगी हर मोर पे एक जंग है

उसे लड़ता जा और बढ़ता जा आगे 

जीत तो मिलनी ही है 

बस वक़्त की बात है 

आखिर किसी की कहा चली है इस वक़्त के आगे 


सफर ज़िन्दगी में लोग बहुत मिलेंगे 

कुछ आम कुछ ख़ास मिलेंगे 

कुछ मुर्झाया हूँआ तो कुछ खिला खिला मिलेंगे 

पर इनमे तुम्हें कुछ सर्किट कुछ कमली मिल जायेंगे 


जो ज़िन्दगी भर साथ रह जायेंगे 

ग़म को ख़ुशी में बदल ने के लिए 

हर मुश्किल को बिना कहे आसान बना ने के लिए 

अनहोनी को होनी करने के लिए 

और बिना कुछ कहे दोस्ती निभा जायेंगे।


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