ज़िन्दगी मुझे कब समझ आई
ज़िन्दगी मुझे कब समझ आई
ज़िन्दगी मुझे कब समझ आई
यूं तो मस्त रहे हम हमेशा,
क्यूंकि मां के प्यार में बेखौफ
और बेफिक्र रहे हमेशा,
पर जब रब ने हमारी प्यारी चीज़ को
छीनने की छेड़ दी लड़ाई
दर्द जितना ज़ादा हिस्से आया,
ज़िन्दगी उतनी ही ज़ादा समझ आई।
उदासी में भी हँसने वाले चेहरे को
जब गुमसुम पाया ,
जब सबकी कोशिशों से भी
तेरी मुस्कराहट वापस नहीं आई,
जब आंसू छुपा के मुस्कुराने की बात आई,
जिस अंचल में चैन से सोते थे हम,
जब उसी की तकलीफ की वजह से
रातों में नींद नहीं आई,
ज़िन्दगी मुझे तब समझ आई।
प्यार करना जब सीखा,
रब ने प्यारे रिश्तों से सींचा
पर जब उसने उस रिश्ते पर
इतनी मुसीबत फ़रमाई,
जहाँ जीतने के लिए भाग रहा था हर कोई,
वहां कुछ दिन और जी लेने की
कोशिश कराई,
ज़िन्दगी हमें तब समझ आई।
खुदा किसी को किसी पर फ़िदा न करे,
और करे तोह क़यामत तक जुदा न करे
ज़िन्दगी में कभी कभी कुछ ख्वाब अधूरे
आप के साथ रह जाते हैं,
जो पूरा हो नहीं सकते,
पर पूरा होना चाहते हैं,
जब इन्ही ख्वाबों से हुई मेरी लड़ाई,
ज़िन्दगी मुझे तब समझ आई।
कभी भी हार के जिसे गले लगाते थे हम,
जिन नज़रों को ढूंढ़ते थे घर में बचपन से,
जिसकी हसी से सब अच्छा होजाता था,
जब ये सारे जज़्बात तेरी तरफ से नहीं आए,
ज़िन्दगी के मायने मुझे तब समझ आए।
हर ज़रूरी बात आज तक तूने समझाई,
और आज अपनी तक़लीफो में भी
इस बात की दिखाई गहराई ,
की ज़िन्दगी सँवारने को तो ज़िन्दगी पड़ी है,
वो लम्हा संभाल लो जहाँ ज़िन्दगी खड़ी है।
तुझे पहले जैसा हँसता, खेलता,
स्वस्थ जब में नहीं कर पाई,
जब फ़िर से आंसू छुपा के
बार बार मुस्कुराने की बात आई।
ज़िन्दगी मुझे तब समझ आई
ज़िन्दगी मुझे अब समझ आई
- एक कैंसर मरीज़ के देखभालकर्ता से।