जीवन का नया सबक
जीवन का नया सबक
जीवन में क्या खोया क्या पाया
वक़्त ने कैसा हिसाब कराया,
जोड़ने बैठे लम्हे जीवन के
गम से ज्यादा खुशियों को पाया।
कुछ खोया था इस जग में हमने
लिखे थे कितने अफसाने हमने,
ईश्वर कृपा से जो कुछ पाया
अधिकार जताया उस पर हमने।
बचपन खोकर जवानी पायी
यौवन छूटा तो प्रौढ़ता आयी,
पुराने संस्कारों छूटे जब तो
रिश्तों की नयी परिभाषा आयी।
अंध विकास की दौड़ लगायी
धरा प्रकृति उसे देख सिसकाई,
मैं पा लूँ जग में सबसे ज़्यादा
लालच की नव प्रवृति पायी।
लक्ष्य की ओर चले जब जग में
साथी कुछ मिले बिछड़े पग में,
मिलने बिछड़ने की शिकायत कैसी
पल पल छला गया इस पग में।
समझो प्रकृति का ढंग अनूठा
एक महामारी में अपना रूठा,
नए सबक सिखलाये हमको
मानव समझ गया अपनी पंगुता।
पीछे मुड़कर देखा जब हमने
यादों को जब टटोला हमने,
लेखा जोखा किया पलों का
संतुलन जीवन का पाया हमने।
समझो जन्म मरण का फेरा
जीवन तो इक बंजारे का डेरा,
कुछ पाओगे कुछ खो दोगे
कौन जाने कल किधर सवेरा।