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Vijay kumar Mishra

Abstract

4  

Vijay kumar Mishra

Abstract

जीत भी स्वीकार हार भी स्वीकार

जीत भी स्वीकार हार भी स्वीकार

2 mins
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जीत भी स्वीकार हमें हार भी स्वीकार

हमें तो सिर्फ है किस्मत के करवट का इंतजार

नफरत से भरे लोगों मे नफरत का है संसार

हमने भी देखे हैं बड़े बड़े नये अंधकार!!


जीत भी स्वीकार हार भी स्वीकार!


 नये थे नया जोश था भरते थे ललकार

 क्या हुआ ऐसा जो खुद की सच्चाई भी नहीं स्वीकार

टूटता भरोसा बिखर जा रहा था सपनों का संसार

मुस्करा कर रहे थे खुद से अपने जीवन का व्यापार!!


जीत भी स्वीकार हमें हार भी स्वीकार!


स्वार्थ मे डूबे हम दूसरे के नुकसान मे भी दिखा प्यार

कर्म ना करते थे बस करते थे वक्त का इंतजार

निकाल दिया समय बस नाम के रह गए तीरमदार

हासिए पर आ खड़े थे नये जोश का इंतजार!!


जीत भी स्वीकार हमें हार भी स्वीकार!


 


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