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Vijay kumar Mishra

Others

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Vijay kumar Mishra

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बेखबर इंसान से

बेखबर इंसान से

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"जमीं से आसमां से,

     वक्त के इस जहां से,

 टूटकर फिसला हूँ मैं,

     बेखबर इंसान से "


" रंग रूपों में पड़ा,

    झूठे लोगों का बाधा बड़ा,

  पीठ चाकू मारते रहे,

    मुस्कराते रहा मैं खड़ा "


"तस्वीर भी अनजान थी,

    न उनकी कोई पहचान थी,

 झूठ ही उनका झूठ था,

    और वही उनका शान था "


"मैं बेखबर ऐसे लोगों भी,

    हर वक्त खबर लेता रहा,

जो रात के अंधियारे में,

   साथ किसी और का देता रहा "


"वक्त की खुशियाँ उनको मुबारक,

    जो दे गए अपने हिस्से का गम मुझे ,

आज नहीं तो कल उन्हें अहसास होगा,

       जो तौला हर किसी से कम मुझे "   

     

     


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