बेखबर इंसान से
बेखबर इंसान से
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"जमीं से आसमां से,
वक्त के इस जहां से,
टूटकर फिसला हूँ मैं,
बेखबर इंसान से "
" रंग रूपों में पड़ा,
झूठे लोगों का बाधा बड़ा,
पीठ चाकू मारते रहे,
मुस्कराते रहा मैं खड़ा "
"तस्वीर भी अनजान थी,
न उनकी कोई पहचान थी,
झूठ ही उनका झूठ था,
और वही उनका शान था "
"मैं बेखबर ऐसे लोगों भी,
हर वक्त खबर लेता रहा,
जो रात के अंधियारे में,
साथ किसी और का देता रहा "
"वक्त की खुशियाँ उनको मुबारक,
जो दे गए अपने हिस्से का गम मुझे ,
आज नहीं तो कल उन्हें अहसास होगा,
जो तौला हर किसी से कम मुझे "
