झूठ
झूठ
कुछ झूठ तुम बोलते हो
कुछ झूठ हम भी बोल लेते हैं।
एक वक़्त खाने को ना हो
तब भी आपने को राजा केहलाते हैं।
एक तुम हो कि पेहनते हो तो लाखों कि
फिर भी आपने आपको फकीर केहलाते हो,
तुम आपने लिये जीते हो
हम आपनों के लिये जीते हैं।
कुछ झूठ तुम...
ये हमारा मजबुरी थी कि
हम तुम्हारा हात पकड़ लिये,
डक्टर समझ के ईलाज चाहते थे
तुम तो खुद एक मरीज निकले।
वाह! क्या ख्वाब दिखाया तुमने
ख्वाबों में जीने की जो आदत है हमें
हम क्यों समझ लिये वो ख्वाब हमारे लिये थे
जब कि करोड़पति फकीरें नंगा घुम रहें।
ये देशप्रेम भी बड़ी गजब की चिज है
जब कभी कोइ कड़वा पीना पड़े
हम एक झूठ बोल हि लेते हैं
“देश में कुछ अच्छा हो रहा है।”
झूठ के साहारे जीने वाले हम
समय के साथ याद नहीँ रख पाते
वो कड़वा सिर्फ हमें क्यों पीना पड़ा
बाकि सब लोग क्या बिदेशी थे?
मुसीबत झेलना अब आदत सी हो गयी हे
मुँह मे फिर भी झूठ हर वक़्त रेहता है
“चल रहा है सब ठिक ठाक”
क्या देश डुबने के बाद जागना है?
झूठ बोलना तुम्हारा आदत है,
झूठ बोलना हमारा मजबुरी है।
तुम सुधरना नहीँ चाहते
ना सुधरना हमारा विवशता है।
चलो फिर उस आदत
और मजबूरी के साथ
कुछ झूठ तुम बोलते रहो
कुछ झूठ हम बोलते रहें।
