जहर
जहर
उन बूंदों की लड़ी को बह जाने दिया हमने,
शायद दो बूंदे जहर की उसे रास ना आई
हमने बहना भी अपना लिया, और बहाना भी,
आखिर दो बूंद इसके साथ मुझे ही रास आई।
तोहफा ही तो चाहा था मैने उससे
उसने कह दिया मुझे क्या फरक पड़ता है,
अब देख मेरे प्यार की इंतेहा,
क्या फरक पड़ेगा इंतजार पे।
कहा था कोई फरक नी पड़ता चलो
प्यार में खुद को मिटा करके देख लेते है।
