STORYMIRROR

Geeta Purohit

Abstract

2  

Geeta Purohit

Abstract

जाने कहां

जाने कहां

1 min
2.6K


जाने कहां गये 

वो दिन 

सुबह से शाम तक

काम की अफरा तफरी

बच्चों की चिल्ल पों 

मैं तब झिड़कती रहती

रखो सामान तरतीब से

जाने कहां खो गये वे पल

ना बच्चे कब बड़े हुऐ

चूजों के पर निकले

जैसे उनके भी

और वे सब कुछ

झिड़क उड़ गये 

जाने कहां गये वो पल 

अब तरसती हूं कि 

कब वे आयें

सब कुछ बिखेर जायें

पहले देती थी हिदायतें 

ये करो वो ना करे

अब सोचती हूं

जो मरजी करो

बस आकर 

मेरे गले लग जाओ

काश एसा होता

लौट आते वो पल

जी लेती जी भर

मौज मस्ती के पल

उनके संग 

जाने कहां गुम हुए

वो पल


Rate this content
Log in

More hindi poem from Geeta Purohit

Similar hindi poem from Abstract