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Suryakant Tripathi Nirala

Classics

3.0  

Suryakant Tripathi Nirala

Classics

जागो फिर एक बार!

जागो फिर एक बार!

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जागो फिर एक बार

समर अमर कर प्राण

गान गाये महासिन्धु से सिन्धु-नद-तीरवासी

सैन्धव तुरंगों पर चतुरंग चमू संग

”सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊंगा

गोविन्द सिंह निज नाम जब कहाऊंगा”

किसने सुनाया यह

वीर-जन-मोहन अति दुर्जय संग्राम राग

फाग का खेला रण बारहों महीने में

शेरों की मांद में आया है आज स्यार

जागो फिर एक बार!

सिंहों की गोद से छीनता रे शिशु कौन

मौन भी क्या रहती वह रहते प्राण?

रे अनजान

एक मेषमाता ही रहती है निर्मिमेष

दुर्बल वह

छिनती सन्तान जब

जन्म पर अपने अभिशप्त

तप्त आँसू बहाती है;

किन्तु क्या

योग्य जन जीता है

पश्चिम की उक्ति नहीं

गीता है गीता है

स्मरण करो बार-बार

जागो फिर एक बार


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