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Brijesh Surana

Abstract

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Brijesh Surana

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इंसानकी हैसियत

इंसानकी हैसियत

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बस भूलने की कगार पर था तू,

यह इंसानियत होती है क्या ?

एक अस्तित्वहीन जीवने दिखाया,

हे इंसान तेरी हैसियत है क्या ?


बम और गोली के बलबूतेपर तू,

छाती ठोक ठोक कर उछलता था।

गिरगिटकोभी शर्मा आ जाए इस भांति,

पल-पल रंग बदलता था।


चल पड़ा था हैवानको सिखाने,

देख मुझे हैवानियत होती है क्या ?

एक अस्तित्वहीन जीवने दिखाया,

हे इंसान तेरी हैसियत है क्या ?


पैसों के बलबूते पर लगी आदतों ने,

तेरे आंखों पर बांधी पट्टी है।

आखिर जलकर खाक है होना,

या तेरे नसीब में मिट्टी है।


अच्छे-अच्छे ने यहाँ खाख है छानी,

पगले तेरी शख्सियत है क्या ?

एक अस्तित्वहीन जीवने दिखाया,

हे इंसान तेरी हैसियत है क्या ?


कुदरत ने दिया है फिर एक बार इशारा,

अब वक्त रहते संभल जा।

चाहता है अगर वो फिर बदले करवट,

तो उठ पहले खुद बदल जा।


आदत डाल ले अपने अंदर झांकने की,

फिर समझेगा तेरी असलियत है क्या ?

एक अस्तित्व हीन जीवने दिखाया,

हे इंसान तेरी हैसियत है क्या ?


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