STORYMIRROR

Manoranjan Srivastava

Inspirational

3  

Manoranjan Srivastava

Inspirational

इन्सानियत निभाना चाहता हूँ

इन्सानियत निभाना चाहता हूँ

1 min
218


एक तारा बन रात भर जगमगाना चाहता हूँ,

नव प्रभात की चाह में खुद को मिटाना चाहता हूँ,

एक पंछी बन उड़ कर असमां समेटना चाहता हूँ, 

चक्रवातों के भँवर में भी किनारा पाना चाहता हूँ,

नौका बन मीन की भांति सागर तलाशना चाहता हूँ,

नीरस उजाड़ पतझड़ में भी बसन्त बनना चाहता हूँ,

हरी भरी बगिया में बैठ कोयल सा गुनगुनाना चाहता हूँ,

जाति, धर्म, भेद, व्यभिचार, हैवानियत नहीं जानना चाहता हूँ,

इंसान हूँ इंसान बनकर इंसानियत निभाना चाहता हूँ!सभी की तरह मैं भी अपना अधिकार पाना चाहता हूँ,

लेकिन अधिकार लेने से पहले मैं कर्तव्य निभाना चाहता हूँ,

प्रकृति आज कुछ पाने से पहले मैं कुछ देना चाहता हूँ,

विपदा की घड़ी में स्वार्थ छोड़कर परमार्थ करना चाहता हूँ,

आज फिर स्वयं की खातिर तेरी सुरक्षा करना चाहता हूँ,

इंसान हूँ इंसान बनकर इंसानियत निभाना चाहता हूँ!



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational