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KAVY KUSUM SAHITYA

Abstract

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KAVY KUSUM SAHITYA

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इंसान

इंसान

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इंसानो की दुनिआ में कातिल भी है इंसा          

मासूम चेहरें से आईना को भी धोखा

दिल चेहरे के फर्क का असली नकली इंसा !


रहम करम कि खुदा से दुआ मांगता 

खुद को खुदा समझ बैठा इंसा !

कभी मासूम भोला -भाला रौंदता दुनिया को

जुल्मों से बादशाह बे मरुआत भी इंसा।


खुद की हसरत के जूनून का जालिम

हर रोज हद से गुजरता इंसा।

प्यार इकरार में जीने मरने कि कसमें

खाता प्यार में पागल दीवाना इंसा।।


नफरत के नस्तर दर्दों का घायल

जिंदगी जहाँ का दुश्मन भी है इंसा।

मुकद्दर का सिकंदर तक़दीर का

मारा मोहताज भी है इंशा।


 रिश्तों का गुरुर रिश्तों में पैदा रिश्तों

के लिये जीत मरता भी है इंसा।

समंदर के तूफां से लड़ता खुद कि कश्ती का

माँझी साहिल कि शख्सियत का इंशा।


 कभी समन्दर कि लहरों में उलझा जिंदगी

कि जंग लड़ता कश्ती किनारों कि तलाश का भी इंसा।।

फतह फक्र का फानूस जंगों कि

ज़मीन तारीख का भी है इंसा।


कभी शिकस्त के शर्म से तारीख

का काला चेहरा भी है इंशा।

इश्क इबादत कि मस्ती का मतवाला भी है इंसा

हुस्न अदा कि बेवफाई का

बावफा भी है इंसा।।


कभी गम में पिता कभी खुशियो में पिता

नशा शराब में नहीं नशेमनमन कि

नसीब में पिता है इन्सा।

अदाओं की महफ़िल का कद्रदान

अदावत का मेहमान अदाओं पर मर

मिटता अदावत में मिट जाता इंसा।


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