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Mayank Rana

Abstract

4.4  

Mayank Rana

Abstract

इंक़लाबी कलम

इंक़लाबी कलम

2 mins
364


अपनी दिल की दासतां दूसरों को

नहीं बताना चाहता हूँ,

मैं कवि नहीं हूँ पर जानें क्यों,

जब दुखी होता हूँ अपने साथ

अपनी कलम को ही पाता हूँ।


अपने क्रांतिकारियों को

याद कर कभी भी रो जाता हूँ,  

उनके बलिदानों की गाथा,

चीख चीख कर सबको सुनाता हूँ

 

मैं देश भक्त तो नहीं हूँ पर  

देश का नाम सुनते ही बस

थोड़े स्वाभिमान से भर जाता हूँ।


जब देश का ख़याल आता है मन में

तो इस सोच में पड़ जाता हूँ,

करना कितना कुछ है देश के लिए

पर कुछ नहीं कर पाता हूँ।


जब भी सोचता हूँ देश के बारे में

तो अपनी आँखों के आगे

भगत सिंह,आज़ाद, अशफ़ाक़ह

और बिस्मिल को पाता हूँ।


काश मैं भी क्रांतिकारी होता,

तो कितनी ख़ुशी मनाता, 

इंकालाब ज़िंदाबाद और

वंदे मातरम के नारे सिंह,

आज़ाद, अशफ़ाक़ह और बिस्मिल

के साथ लगाता, 


'मेरा रंग दे बसंती चोला'

गाना भी गाता,

हँसते-हँसते फांसी के

तख्ते पर भी चढ़ जाता,

अपने देश को अपने पैदा

होने पे गर्व महसूस कराता,


सरफ़रोशी की तमन्नाको थोड़ा

अपने दिल में भी जगाता 

मैं क्रांतिकारी क्यों नहीं हुआ

ये सोच के कभी गम में पड़ जाता हूँ,


मैं सैनिक क्रांतिकारी नहीं हूँ ......2

 फिर भी अपना जीवन देश के

नाम लिखना चाहता हूँ।


जब कभी हिम्मत खोता हूँ,

 जब कभी दुखी हो जाता हूँ

दुखी होकर ज़िन्दगी से हार जाता हूँ,


 मैं मर जाऊँगा मुझसे और

नहीं होगा अब बस।" 

जब ये ख़याल ज़हन में लाता हूँ,

तब भी दुःख में अपने आप को 

बार बार बस यही याद दिलाता हूँ,


'इस मिट्टी का एहसान है तुझपे, 

"तेरे वतन का क़र्ज़ है तुझपे "

बस वही क़र्ज़ चुकाने के लिए

फिर से जी जाता हूं।


अपने जीवन से सबको

जीता जागता

उदाहरण देना चाहता हूँ,

पर 16 साल के बच्चे की 

आखिर सुनेगा कौन ?


ये सोच के पीछे हट जाता हूँ,

मैं जियूँ या मरुँ लोगो को क्या लेना देना

'मैं भी तो एक आम आदमी हूँ'

बस इसी सोच पे रुक जाता हूँ।


कहने को इतना कुछ है लोगो से

पर कुछ भी नहीं कह पाता हूँ,

बताने को इतना कुछ है लोगो को

पर कुछ बयान नहीं कर पाता हूँ,


शायद मैं लेखक️ नहीं हूं न इसलिए

अपने शब्दों के मोतियों को,

वाक्यों के धागे में नही पिरो पाता हूँ।


  मुझे लिखने ️का कोई शौक नही है

 बस अपने दिल के भाव बताता हूँ,

 मैं कोई शायर नहीं हूँ बस कलम से

अपने दिल की आग को शोला बनाता हूँ,

  अपने साथ साथ औरो में देशभक्ति जगाता हूँ,


देशप्रेमी या देशभक्त  नहीं,

ज्यादातर लोगो के बीच मैं

पागल के नाम से जाना जाता हूं। 

 

कविता अच्छी न लगी हो तो माफ़ी चाहता हूँ 

मैं तो बस कविता के ज़रिये,

अपनी विडम्बना

बस अपना दुःख बताता हूँ 

  

औ मैंने तो पहले ही कहा था,

मैं कवि नहीं हूँ पर जानें क्यों ,

जब भी दुखी होता हूँ तो अपने साथ,

अपनी ️कलम को ही पाता हूं।


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