इनकार
इनकार


आज कलम ने
कविता लिखने से किया इनकार
कहा उसने
आदत डाल लो
न लिखने की
खत्म होते पेड़ो को संभाल लो
खत्म होते कागज़ों को संभाल लो
हर रोड पर पड़े कागज़ी इश्तेहार में
मेरे मरने की ही तो खबर है
रौंदे जाते हो जिन्हें ,बेरहमी से तुम
मेरे नए निर्माण की फिक्र है तुम्हें?
कहाँ से लाओगे कागज़ तुम?
मत लिखो कविता पेड़ों पर
क्यों लिख रहे विलुप्त होते धन पर?
कविता तो लिखी जाती है
नव किसलयों पर
वसंत पर
पत्तियों की हरीतिमा पर
फूलों पर
फूलों पर आती
तितलियों पर
पेड़ो की छांव पर
उससे बंधे झूलों पर
पेड़ो को साक्ष्य बनाकर
सुने गए अनगिनत
प्रेम निवेदन पर!
जब पेड़ ही न रहने वाले तो
क्यों उगा रहे अपनी पंक्तियां इनपर?
उगाना ही है अगर,
तो उगाओ
अपने शब्दों जितने पेड़
आने दो हवा।
नई नस्लों को दो,
साँस लेने वाला माहौल!
फलों को चखने दो,उन्हें
पेड़ से तोड़कर खाने दो,
खेलने दो उन्हें पेड़ो की छांव में
फिर उनकी हंसी में
देखो कविता
लिखो कविता
गाओ कविता