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jyotiupreti sati

Inspirational

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jyotiupreti sati

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इक तारे की सीख

इक तारे की सीख

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हर आस में, हर बात में, ख्वाहिशों में है,

महफ़िल लगे क्यों खाली, हर इक साज़ में वो है।


ढूंढें नज़र पागल फिरे मन, बाँवरा बनकर

बस उस नज़र की तलाश में इक आस सी क्यों है।


वो शाम की गहराइयाँ, वो याद की पुरवाइयाँ,

जिसे देखो वो गुम है खुद में, क्यों हर तरफ खामोशियाँ।


ये सोचती हूँ कब से मैं, इकटक नज़र है आसमां में,

दूर इक अकेला तारा जल रहा और बुझ रहा।


किसकी तलाश में, इस विशाल नभ में ,

वो बस चला ही जा रहा।


बस खुद में ही गुमसुम, खुद की रोशनी के साथ,

ना किसी साथी ना किसी सहारे के साथ।


वो क्यों अकेला चल रहा ? वो क्यों अकेला जल रहा ?

इस सर्द काली रात का ना डर है उसकी राह में।


विशाल नभ की टिमटिमाहट, समेटे अपनी बाँह में,

जाने किस रहगुज़र की तलाश में, वो चल रहा, वो जल रहा।


वो है अडिग, वो है हटी, नादानियों से दूर है,

जूझता है मुश्किलों से, साहसी भरपूर है।


क्या है जो ऐसा खो गया, क्या अधूरा रह गया ?

उसकी खामोशियों का हर पल, जाने क्या कुछ कह गया।


बस रह गया ये रह गया...

वो क्यों अकेला चल रहा, वो क्यों अकेला जल रहा ?


देखते ही देखते उस रात के मध्यम में,

वो तारा भी संग हो लिया, हाथ थामे चल दिया।


तय किया लम्बा सफर जिस सर्द काली रात में,

बस रात के मध्यम प्रहर में, उसका भी साथी मिल गया।


वो संग-संग नाचता, वो संग-संग घूमता,

अब चाल उसकी तेज़ सी, कुछ शरबती अंदाज़ सी।


ये संग उसके जो चला, वो भी तो उसके जैसा था,

अब चमक उसकी फैलती, दिलकशी अंदाज़ से।


यूँ सोचते हैं हम सदा...ये रात की विरानियाँ,

कभी ख़त्म होंगी क्या ये जीवन की तन्हाइयाँ।


ये ग़म की काली खाइयाँ, ये अनछुई परछाइयाँ,

इक अँधेरी रात सुहानी सुबह लेके आती है।


ये आह सी खामोशियाँ, खुशनुमा एहसास लेके आती हैं,

बस हौसला हो मन में, अपने दिल में इक आस हो।


इक तारा भी सीखा जाता है, ज़िन्दगी के साज़ को।।


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