ईश की आराधना
ईश की आराधना
पाने की तड़प क्या होती है
सालों
साधना के शृंगार की जरुरत नहीं
मन रुपी परिंदा
एकरुपता साधे जब ईश से
करुणाक्रंदन भाव से
प्रार्थना रुपी परवाज़ लिये
हदयतल से याद करता है
तब
उसकी आभा से बहती है
प्रेम संगीत की धुन
अनहद नाद बन कर
गुप्त रूप से
हमारे
हृदय की धड़कनों मे गूंजती है
एकतार होते है भाव भगवान से
और
जब बहने लगे प्रीत से भरे अश्रु
एक हल्की सी मुस्कान के साथ
निज नैंनों से
तब मानों तुम्हारी हर आरज़ू को
थाम लिया ईश्वर ने अपने आगोश में
सौप दो खुद को उसकी पनाह में
हो जाओ सारे ड़र से परे
हाँ है ये मेरे खुद का अनुभव।
