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Raj Kumar Indresh

Inspirational

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Raj Kumar Indresh

Inspirational

हवा का रुख़ बदल जाये

हवा का रुख़ बदल जाये

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वो हवाओं का रूख, 

ऊँचे पर्वतों से टकरा

अपना रूख बदलता, 

मावठ करता

मन मेरा, कृषक और 

मजदूर का मचलता।

पर यह नीति हवा

महाबलियों के कपोलों में 

जिह्वा-दंत चक्की में पिस

रूप शब्द का सार्थक बदल

एक की जाति पूछता 

दूजा गोत्र बखानता।


मुझे इस रूख से क्या लेना

फिज़ा का रूख बदल 

जाति, धर्म, चाय से निकल

शब्द का अर्थ बदल 

बेरोजगारी को रोजगार में 

महंगाई का रोक रास्ता 

रुपये का स्तर उठा।

न मुझे तेरी चाय पीनी 

न तेरे गोत्र में रिश्ता करना। 

शब्द को ऐसे गरजा 

हवा का रूख बदल जाये। 

देश में भाई चारे की 

खुशबू फैल जाये। 



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