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Tarusha Tak

Abstract

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Tarusha Tak

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हूंँ मैं सुलझी -सूलझी

हूंँ मैं सुलझी -सूलझी

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हूंँ मैं सुलझी -सूलझी

पर क्यों हूंँ मैं इतनी उलझी-उलझी

कहने को तो खुली किताब सी हूँ मैं

तो क्यों है इतना मुश्किल

मुझे समझना हूंँ मैं सुलझी -सूलझी


पर क्यों हूंँ मैं इतनी उलझी-उलझी

सबकी अपनी तो हूंँ मैं

पर मेरा अपना कोई नहीं

सबके तो साथ हूंँ मैं

पर मेरे साथ कोई नहीं


हूंँ मैं सुलझी -सूलझी

पर क्यों हूंँ मैं इतनी उलझी-उलझी

कहने को तो हूंँ अपनों की भीड़ में

पर न जाने क्यों तन्हा हूँ इस दिल से

हूंँ मैं सुलझी -सूलझी

पर क्यों हूंँ मैं इतनी उलझी-उलझी।


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