Kavi shalabha kumar
Romance
चढ़ा इश्क का रंग था हम पे
कोई न समझा!
गीत
होली का मौसम ...
इस्तीफा दे चुके थे हम महफिल-ए-मोहब्बत से बोली सांसो से हमारी लगाई थी किसी ने... इस्तीफा दे चुके थे हम महफिल-ए-मोहब्बत से बोली सांसो से हमारी लगाई थी किसी...
पर जब से बिछड़ी हो तुम मुुुुझसे हालत गंभीर क्या अंजान हो तुम पर जब से बिछड़ी हो तुम मुुुुझसे हालत गंभीर क्या अंजान हो तुम
पर हर इम्तिहान के साथ ये निखर कर ही आयेगा। पर हर इम्तिहान के साथ ये निखर कर ही आयेगा।
फ़िक्र तो तेरी हर घड़ी हर पल होती है, अब बस जिक्र नहीं होता, और तू ना जाने क्या सोच फ़िक्र तो तेरी हर घड़ी हर पल होती है, अब बस जिक्र नहीं होता, और तू ना जाने...
और जब दिल की कहीं तब तूने साथ रहने ना दिया। और जब दिल की कहीं तब तूने साथ रहने ना दिया।
इश्क में कोई बंदिशें मजबूरियां न होती है, इश्क में हमसफ़र से दूरियां न होती है। इश्क में कोई बंदिशें मजबूरियां न होती है, इश्क में हमसफ़र से दूरियां न ...
सोचा नहीं था तू मुझसे मिलेगी, मिलकर मेरे दिल की चाहत बनेगी। सोचा नहीं था तू मुझसे मिलेगी, मिलकर मेरे दिल की चाहत बनेगी।
हमने ज़िद न किया है किसी बात का कभी चलो अब मान भी जाओ तुम मेरे ख़ातिर हमने ज़िद न किया है किसी बात का कभी चलो अब मान भी जाओ तुम मेरे ख़ातिर
सपनों की चादर प्रेम के धागे। सपनों की चादर प्रेम के धागे।
ये बस शुरूआत तो था और ये सोचना बी पॉजिटिव का एहसास जो था। ये बस शुरूआत तो था और ये सोचना बी पॉजिटिव का एहसास जो था।
नहीं चाहिए मुझे तोहफे़ तुम्हारे , बस थोड़ा सा मुझे प्यार दो । नहीं चाहिए मुझे तोहफे़ तुम्हारे , बस थोड़ा सा मुझे प्यार दो ।
या पाषाण सा दिल, ये जो इंतहा है क्यों सिमटती नहीं ? अब तू ही बता पिया। या पाषाण सा दिल, ये जो इंतहा है क्यों सिमटती नहीं ? अब तू ही बता पिया।
बन जाता है वो एक खुदगर्ज रिश्ता, जो दूसरे के दुःख नहीं समझता। बन जाता है वो एक खुदगर्ज रिश्ता, जो दूसरे के दुःख नहीं समझता।
तुझे दिल में बसाना चाहती हूँ बस तुझको पाना चाहती हूँ तुझे दिल में बसाना चाहती हूँ बस तुझको पाना चाहती हूँ
एक जान का ये प्रश्न है एक जान का ये प्रश्न है
लौट कर आएं बहारे औ चमन खिल जाए पास भंवरों को बुलाए तो हमें खत लिखना लौट कर आएं बहारे औ चमन खिल जाए पास भंवरों को बुलाए तो हमें खत लिखना
वक्त और याद में बस यही फ़र्क खलता है, भिगोकर आँसुओं से नैनों को सुकून मिलता है।। वक्त और याद में बस यही फ़र्क खलता है, भिगोकर आँसुओं से नैनों को सुकून मिलता है...
इतना भी क्या गुरूर , की हुज़ूर हमीं से ये रुस्वाई जिनकी आरज़ू ले हम, उम्र अपनी तमाम करत इतना भी क्या गुरूर , की हुज़ूर हमीं से ये रुस्वाई जिनकी आरज़ू ले हम, उम्र अपनी...
कुछ तो कहो उसे जिसे तुम कह ना सके अपनी आंखों में छुपे इकरार से कुछ तो कहो उसे जिसे तुम कह ना सके अपनी आंखों में छुपे इकरार से
किसी के आँख का नूर मैं बन जाऊं। किसी के आँख का नूर मैं बन जाऊं।