" हम कौन हैं , हमारा खुदा ही जाने '
" हम कौन हैं , हमारा खुदा ही जाने '
नादान कभी तो कभी सयाने,
बदले जग संग हम बने दिवाने,
कभी यहां तो कभी वहां,
ख्वाब शमा और हम परवाने।
खुबसूरती ठहरे वक्त की,
हम जैसे मुसाफिर क्या जाने,
किसे कहते हैं ठौर ठिकाना,
ये घर - दिवारे काफिर क्या जाने।
हम अकल के अंधे हैं थोड़े,
होशियारी से नाता क्या जाने,
फकिरों को अमीरी दिल की है,
जो ख़ुदा के बंदों को बस पहचाने।
रकीब हैं जो मंजिलों के,
रास्तों से दिल लगाना क्या जाने,
वो बिन बातों का आशिक ही क्या या,
जिसपे बने ना हों लाखों फसाने।
आगोश में जो रहता ख़ुदा के,
खुद पे रिवायत क्या या पहचाने,
गर्दिशों तक को जो आसां बनादे,
लोग चले हैं यहाँ उसी को आज़माने।
तुम्हारे नज़रीये में तुम भले हो,
हमारी नजर ना दुनिया ये मानें,
नफरतों की आँधी से उतरकर हम,
चले महोब्बत की सुनामी को लाने।
उठते जाना है काम हमारा,
हर पत्थर की ठोकर हम पहचाने,
कौन कहां - किस वक्त बदला,
सबका हिसाब ज़मीर ये जाने।
भरी जेब के भी फकीर हैं,
जो दुनिया अपने पैरों में माने,
खाली झोली का अमीर वो,
देख चला सर दर पर झुकाने।
सीना चीर जो आसमानों का,
वश में करे ऊंची उड़ानें,
उस परिंदे को न हल्का आंको,
वो ज़मीं से नाता बखूबी जाने।
उड़कर इतराना फितरत है,
इस फितरत से वाकीफ़ हो ज़माने,
गिनाता है जिस गुरूर के फायदे,
वही आएगा इक दिन तुझे दफनाने।