हम दोनों के बीच का पुल
हम दोनों के बीच का पुल
हम दोनों के बीच का पुल
हमारे अनदेखे डोर से बनी है।
तुम उस तरफ
और इधर मैं
दोनों अपने ही खूंटे से बंधी है।
और नीचे बहती
तमाम रिश्तों की दरिया
उछलते उफनती धारा है
बड़े संयम से हमने
बांध रखा है
इस पुल को
बड़े प्रेम से इस रिश्ते को
संवारा है।
हम दोनों के बीच बंधे
इस पुल पर
कितने रिश्ते झूल रहे हैं
आने वाले कितने राहगीर
आते जाते
इस मजबूत डोर को
ज़ोर ज़ोर से हिला देते हैं ।
कुछ तो मैं अनदेखा कर देती हूं
कुछ तो बड़ा ही रुला देते हैं।
इस कच्चे- मज़बूत डोर से बने
पुल पर
कई सांसें उलझी रहती है
कुछ गांठ बांधकर बंध जाती है
कुछ आते- जाते पैरों के बीच
अटकी रहती है।
फिर भी हम दोनों के
बीच का पुल
अपने अपने
सपनों से सजे
इसे हम
अपने ही हवाले रखते हैं।
हम नदी के दो किनारे हैं
मुमकिन नहीं
के मिल पाए
अपने उत्सुक मन की डोर को
इसीलिए
खुद ही संभाले रखते हैं।