हे नारी
हे नारी
हे नारी
समाज से दूर क्यों।
हर क्षण अपने पंजा फेंकने वाले
बाघ जैसा आखें
उन आंखों की ज्वाला से दूर दूर
दौड़ करते हुए ,
थक कर दुख को फूट-फूट कर
मुट्ठी में मौन बनकर
बंद करके दीवारों के पीछे चुपचाप
रहने से क्या फायदा?
दीवारों भी तुम्हारी अनसुनी कहानियां
कहते कहते थक कर मौन
अवस्था में रह गई है।
अब बांध कर,मौन अवस्था
अंकुरित हो आ
पुरानी पेंट परदे खोल कर,
धैर्य ,ताकत , हिम्मत, प्यार
इस दुनिया को दिखाओ
तुम्हारा लालन में समाज का रंग
रूपरेखा बदलने केलिए तैयार है
नारी की शक्ति के बारे में
नई दीवारों भी
नई अनसुनी
कहानी कहती है ।