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Pankaj Dhurde

Abstract

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Pankaj Dhurde

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गुजरते लम्हों का ये सफर....

गुजरते लम्हों का ये सफर....

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गुजरते लम्हों का ये सफर..

ना जाने किस मुकाम तक जायेगा..

लम्हों ने की खताएँ कुछ ऐसी..

ना जाने..किस डगर तक मुझे संभालेगा..


कुछ आशियाने मेरे भी हैं..

भरी महफिलो मैं, जिक्र मेरे भी हैं..

यू ही कोई किस्से कहानियाँ कही जा रही हैं..

तू बस सब्र रख वो दिन भी आयेगा..

दास्ताँ ये मेरी सुनाने कोई फरिश्ता भी आएगा..


निकला हूँ अभी खुद की तलाश में..

दौडा हूँ ना जाने किस आहट में..

जर्रा - जर्रा, किस्से - कहानियां भी मेरी होगी..

तू बस सब्र रख ये मंजिले भी मेरी होंगी।..



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