गर तू ना रुके
गर तू ना रुके
खाबो के परिंदे लेकर चले
उस जहाँ जहा खाब मिले
हौसले को रख मज़बूत
मौका भी है दस्तूर
लेकर चलो खुद को कहीं
हो जहाँ मुश्किल वही
कोहराम मचने वाला है
हर तरफ हर कही
हार जाओ तो गम नहीं
लड़ते रहो हम है वही
चट्टान भी कहे तुम से
अब पार करो हम है वही
रूह में आंधी दौड़ाओ
तूफ़ान आँखों से बहे
तेज़ गर्मी तन से निकले
हौसले से चले कदम बड़े
मैं बुलंदी तक न पहुँचा तो
बुलंदी नई लिखूंगा
मेरी मंज़िल तय करेगी
मैं कब कहा पहुँचा।
आसमाँ से दूर गर हो
फासले कम न लूंगा
लाख हार मुझसे मिले एक
जीत मैं तय करूँगा।
चलते रहो रुकना नहीं
हार से डरना नहीं
डर कर जीता वही है
जो डर पर जीता सही है
कब तक रोकेगी
मुश्किलें कभी तो थक जायेगी
तू ना थक ना तू
रुकना जीत तो तभी आएगी।