Navpreet Kaur

Abstract Inspirational

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Navpreet Kaur

Abstract Inspirational

ग़मों से बातचीत

ग़मों से बातचीत

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इक दिन मुझे ग़मो की बारात मिली। अपनेपन के लिए एक ग़म बोला -

कहिए हाल - ए - दिल कैसा है? मैंने कहा - तुमसे मिलने से पहले बहुत अच्छा था,


अब तुम आ गए हो जी ख़ाक अच्छा होगा ? ग़म बोला हमसे इतना क्यों डरते हो ?

हमने राज़ - ए - दिल सूना दिया, खुशियों से प्रेम जता दिया। 

महकाती खुशियाँ जीवन को, बहलाती खुशियां हर मन को।

क्यों न हो प्रेम इन खुशियों से, ग़म सुन कर सोच में पड़ गया,


शायद ग़म को भी ग़म था लग गया।

बोला : 

कभी फूल गुलाब का देखा होगा, साथ उसके कांटो को भी देखा होगा, कुछ ऐसा ही साथ हमारा है मेरे कारण ही सुख प्यारा है,

जब हर कोई सुख लेता है। तब ग़म ही साथ देते हैं। ग़म बेवफा नहीं खुशियों जैसा, क्यों करते हो फिर व्यवहार ऐसा ?


खुशियां तो साथ छोड़ देतीं हैं, पर ग़म से रहा नही जाता। कैसे रोने वालों का सहा नहीं जाता। पास दुखियों के आ जाता हूँ।

जिंदगी भर साथ निभाता हूँ। मगर सिर्फ उसी का साथ, जो जिंदगी से घबराता है। जो ज जाता हाउ जिंदगी से, ग़म उससे हार जाता है।


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