घूम-घूम के करूँ सजग मैं, शोषित-पीड़ित समाज को
घूम-घूम के करूँ सजग मैं, शोषित-पीड़ित समाज को
घूम-घूम के करूँ सजग मैं,
शोषित-पीड़ित समाज को।
कल की छोड़ो,उठो,जगो,
और करो समुन्नत आज को।
सिर्फ किताबों में वर्णित है,
पूजा से भगवान मिलेंगे।
ढेरों पाने की उम्मीदों,
से पीड़ित जजमान मिलेंगे।
अगर अधिक पाना है यारों,
पढ़ो नई तकनीक को प्यारों।
मत जाओ पाषाण पूजने,
पढ़ो-पढ़ो, तुम पढ़ो दुलारों।
पढ़कर ही तुम पा जाओगे,
गुणी ज्ञान के ताज को।
घूम-घूम के करूँ सजग मैं,
शोषित-पीड़ित समाज को।
शिक्षा और विज्ञान है करता,
हमको सजग विकारों से।
भगवानों के नाम लूटते,
हवन,श्राद्ध,छठिहारों से।
ढोंग-पोंग को छोड़ बढ़ो तुम,
जागो रूढ़ि विचारों से।
तर्क करो और ज्ञान का अर्जन,
वाकिफ हो अधिकारों से।
पाखंडों को छोड़ मिटाओ,
जड़ता के इस राज को।
घूम-घूम के करूँ सजग मैं,
शोषित-पीड़ित समाज को।।<
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कभी गौर से सोचा-समझा,
पिछड़ा कैसे हुये आप हो।
कभी राज था शोषित जन का,
पिछलग्गू तुम हुये आज हो।
बड़ी बीमारी क्या है तेरी ?
कैसे इसका भी इलाज हो ?
अगड़े जन जो नही चाहते,
शोषित का भी कोई काज हो।
समता शिक्षा से आएगी,
दूर करो अभिशाप को।
घूम-घूम के करूँ सजग मैं,
शोषित-पीड़ित समाज को।
है शाश्वत उपदेश कर्म कर,
भाग्य कभी बलवान न होता।
कायर, मूर्ख, गुलाम कभी भी,
इज्जत पा धनवान न होता।
विद्वानों का कभी,कहीं भी,
शोषण और अपमान न होता।
गधा, गधा है, घोड़े जैसा,
उसका इज्जत-मान न होता।
प्रहरी है अभियान मिटायें,
धर्म-ढोंग के खाज को।
घूम-घूम के करूँ सजग मैं,
शोषित-पीड़ित समाज को।
कल की छोड़ो, उठो जगो,
और करो समुन्नत आज को।
घूम-घूम के करूँ सजग मैं,
शोषित-पीड़ित समाज को।