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Arti Tiwari

Inspirational

1.8  

Arti Tiwari

Inspirational

घड़ी

घड़ी

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वो पिता की घड़ी थी

चांदी सी चमकती चेन में मढ़ी थी

घड़ी की भी एक कहानी थी

सुनी पिता की ही जुबानी थी

वे कहते

कभी दो सेकंड भी

आगे पीछे नही हुई

जबसे खरीदी है

सदा नई है

उनकी घडी का ये फलसफा था

घड़ी वो

जो बीस रूपये में ली हो

टाइम ठीक बताती हो

बिना रसीद की हो

हम विभोर हो सुनते

घड़ी को छूकर गौरान्वित होते

पिता चौबीस घण्टे में

एक बार चाबी भरते

और घड़ी सदा टिकटिक करती रहती

मुस्तैदी से

घड़ी ने निकाल दी

एक पूरी उम्र

बिना नागा,सुबह चार बजे जगा देती

उसकी सुइयों पर

दौड़ता था वक़्त

पिता कभी नही हुए किसी काम में लेट

वे अपनी घड़ी के

घण्टे वाले कांटे को अतीत कहते

जो मिनटों पर थिरकता

वही उनका वर्तमान था

और साइड बार के छोटे से कांटे को

वे बड़ी आशान्वित निगाहों से देखते

और उनके सपनों में

वो बड़ा हो जाता

उन्होंने नही की कोई शिकायत

कभी घण्टे वाले कांटे से

जिसकी चाह थी

क्यों नही मिला वो

वे साइड बार को भी साइड में ही रखते

कहते अपेक्षा मत करो

और भागते हुए मिनट वाले कांटे को

जीते रहे हर पल

उनकी घड़ी बड़ी विश्वसनीय थी

#positiveindia


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