घबराओ न
घबराओ न


घबराओ न दर्द के क्षण ,आ जायें कहीं जो जीवन में ।
उत्ताल तरंगे उद्वेलित हों, विपदाओं की अन्तर्मन में।।
दुख के ये कलुषित बादल, ठहर न पाते ज्यादा दिन ।
कुछ पल के बस होते हैं, अँधियारे से भरे ये दुर्दिन।।
उल्लास की स्वर्ण रश्मियाँ, आती घटायें मर्दन कर ।
प्रसून होते उन्मिष उपवन, सुरभि का संवर्धन कर ।।
कुछ दिन में ही हट जायेगी, गर्त जमीं जो दर्पण में ।
घबराओ न दर्द के क्षण,आ जायें कहीं जो जीवन में।।
हर्ष विषाद के ये पहलू, जीवन में आते जाते रहते हैं ।
वही सफल हो पाते जो, दुख में भी मुस्काते रहते हैं।।
सुख दुख यथार्थ जीवन का, फिर इससे घबराना क्या ।
मझधार है तो किनारा भी, तरंगों से डर जाना क्या।।
स्वर्ण किरणें कल आयेंगी, गर आज तम छाया मन में ।
घबराओ न दर्द के क्षण , आ जायें कहीं जो जीवन में।।
सृजन अगर जीवन दर्शन, विनाश भी एक सच्चाई है ।
गर आज काली निशा घनेरी, कल ऊषा की तरुणाई है।।
शूल आज राहों में बिखरे, कल फूल खिलेंगे पग- पग में ।
गर आज पराजय हाँथ लगी,कल जय मिलेगी इस जग में।।
उन्नति के पुष्प खिलेंगे सदा, गर जीवन श्रम समर्पण में ।
घबराओ न दर्द के क्षण , आ जायें कहीं जो जीवन में।।