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Kopal Rastogi

Abstract

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Kopal Rastogi

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एकांत

एकांत

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जनिका जिज्ञासा है,

आवर्ती चिंतन की दशा है,

स्वप्न सा अक्षरशः है,

एकांत!

स्वार्थ की अवस्था है,

निज मन की व्यथा है,

स्वकृत्य की कथा है,

एकांत!

स्वयं का स्वयं से तर्क कथन है,

एकाकी का व्यसन है,

जटिल विचारों का बंधन है,

एकांत!

खुद की खुद से जिरह है,

उलझती सुलझती गिरह है,

पेचीदा मसलों की वजह है,

एकांत!

स्वपरिचय का आद्यन्त है,

आत्मा का हेमंत, बसंत है,

विषमता का चक्रदन्त है,

एकांत!

स्मृतियों की मणिका है,

स्वतंत्रता की अनुक्रमणिका है,

ऊर्जा किरण की कणिका है,

एकांत!

न आदि न अंत है,

आल्हाद का ग्रंथ है,

परमानन्द का पंथ है,

एकांत!

हाँ! यही एकांत है,

जब मन विचलित

और

परिवेश शांत है।


साहित्याला गुण द्या
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