एक शीर्षक
एक शीर्षक
आज थामा है कलम इस हाथ में
जाने कितने शब्दों को पिरोए।
सोच में जाने कितने सोच आए
पर जाने क्यों एक शीर्षक ही समझ ना आए ।
कभी बेचैनी सी इस मन में, मन की उन बातों को
शक्ल एक देने की चाह में हम उन शब्दों से बस लड़ते गए।
अधूरी रह गई पंक्तियां.......
और बस अधूरा रह गया वह पन्ना......
आज थामा है कल अब इस हाथ में
पर जाने क्यों एक शीर्षक ही समझ ना आए।
घबराना जाए मन मेरा , कहीं छूट न जाए
शब्द मेरे फिर अधूरा ना रह जाए एक और पन्ना.....
आज थामा है कलम इस हाथ में
जाने कितने शब्दों को पिरोए।
सोच में जाने कितने सोच आए
पर जाने क्यों एक शीर्षक ही समझ ना आए ।