देख लगे तुम अजर-अमर हो। कौन कहेगा तुम नश्वर हो? ख़त्म न हो वह संचित ज़र हो। अच्युत है सौंदर... देख लगे तुम अजर-अमर हो। कौन कहेगा तुम नश्वर हो? ख़त्म न हो वह संचित ज़र हो।...
तू मुझ मे समा मै तुझ मे समा ....... तन से रूह तक छू कर होने लगे फ़ना। तू मुझ मे समा मै तुझ मे समा ....... तन से रूह तक छू कर होने लगे फ़ना।
लेकिन लफ्ज़ जो ख़यालात में आ रहे है एकदम सीधे सादे से है.. लेकिन लफ्ज़ जो ख़यालात में आ रहे है एकदम सीधे सादे से है..
घबराना जाए मन मेरा , कहीं छूट न जाए शब्द मेरे फिर अधूरा ना रह जाए एक और पन्ना..... घबराना जाए मन मेरा , कहीं छूट न जाए शब्द मेरे फिर अधूरा ना रह जाए एक और पन्ना...
तेरी अतर लिपटी है मेरी देह से मानो स्प्रिट मेरे घावों को धो रही। तेरी अतर लिपटी है मेरी देह से मानो स्प्रिट मेरे घावों को धो रही।
शीर्षक बनो तुम रचना के अक्षर बनने में रखा क्या है। शीर्षक बनो तुम रचना के अक्षर बनने में रखा क्या है।