अद्भुत है सौंदर्य तुम्हारा
अद्भुत है सौंदर्य तुम्हारा
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लगती हो तुम स्वर्ग परी-सी।
देह तुम्हारी स्वर्ण खरी-सी।
शक़्ल नारियल श्वेत गरी-सी।
विद्युत है सौंदर्य तुम्हारा....!!
देख लगे तुम अजर-अमर हो।
कौन कहेगा तुम नश्वर हो?
ख़त्म न हो वह संचित ज़र हो।
अच्युत है सौंदर्य तुम्हारा.....!!
ऋचा सरीखी तुम वेदों की।
बनीं एकता तुम भेदों की।
शीर्षक तुम्हीं अनुच्छेदों की।
श्रीयुत है सौंदर्य तुम्हारा....!!