एक कविता
एक कविता
मैं रुकना चाहता था
इन दौड़ती सड़कों पर
मैं नहीं रुक सकता था
भागमभाग के इस मोड़ पर
मैं देखना चाहता था
नदी की लहरों को
पर नहीं देख पाया
पत्थरों द्वारा उछालें गये तरंगों को
मैं जानना चाहता था
कवि की कल्पना को
कैसे जान पाता
सुन्दर लिखी गई कविता को
फिर मैंने नजरें दौड़ाई
चारों तरफ बनाती हुई सड़कें
अब मैं सड़कों पर खड़ा था
जहाँ से सृष्टि का सृजन हुआ
मैंने जल की बूँदों को देखा
खुशी से पत्थरों सी उछल पड़ी थीं
अनंत से गिरती हुई बूँदें
मेरे आँगन से बह चली अनेकों नदी
सड़कों से होकर नदी मुड़ पड़ी
भावनाओं के उभरते हुए जाल में
जो कल्पनाओं से परे शून्य थी
जिसे मैंने शब्दों में बुना एक कविता
