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Fanindra Bhardwaj

Abstract

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Fanindra Bhardwaj

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एक कहानी का ऐसा किरदार हूँ मैं

एक कहानी का ऐसा किरदार हूँ मैं

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एक कहानी का ऐसा किरदार हूँ मैं 

की बेवजह हूँ और बेकार हूँ मैं 

किसी की हमदर्दी और प्यार हूँ मैं 

तो किसी की कसक बेशुमार हूँ मैं 


किसी की चुभन इकलौता गुनहगार हूँ मैं 

तो किसी की तलब का इकलौता तलबगार हूँ मैं 

किसी की आँखों को अखरता हूँ मैं 

तो किसी की ख़ातिर बहार हूँ मैं 


तभी तो  कहानी का ऐसा किरदार हूँ 

की किसी का दुश्मन तो किसी का यार हूँ 

किस्सी की ज़िल्लत तो किसी का इख़्तियार हूँ 

किसी की तोहमत तो किसी का इक़रार  हूँ 


कोई ठुकाये बैठा है मुझे की उसका इनकार हूँ

कोई सीने से लगाये बैठा है की उसका मैं प्यार हूँ 

कैसे किसको मैं समझाऊँ यार की मैं कैसा किरदार  हूँ।


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