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Nitu Tated

Inspirational

4.5  

Nitu Tated

Inspirational

दरख़्त

दरख़्त

2 mins
580


एक बार तो लौट के आ और आगोश में भर ले 


सूखे दरख़्त की दरारों में कितने किस्से बुने पड़े हैं

आज भी बचपन के वे कोने वहीं तो सिमटे पड़े हैं 

ख़ुशनुमा किलकारियों के पल भी लिपटे पड़े हैं

तेरी मनमौज़ी दौर के ओस कण बिखरे पड़े है

शायद फिर से यह बूढ़ा दरख़्त हरा हो जाए 

उसकी पुरानी कहानी में नया पन्ना जुड़ जाए

और तुझे देखकर फिर से वैसे ही खिलखिलाए

एक बार तो लौट के आ और आगोश में भर ले 


मत भूल, मत भूल की बचपन के कई 

अनगिनत लम्हे तूने इसी की गोद में गुजारे हैं

इसी पीपल की छांव में हँसते-खिलखिलाते

अपने दोस्तों संग न जाने कितनी यादों के पल बाँटे हैं

कुछ खट्टी तो कुछ मीठी उन यादों के लिए ही सही 

बस एक बार जाकर उसे पुचकार ही ले कभी

कौन है उसका ?कौन है तुम बच्चों के सिवा 

एक बार लौट के तो आ और आगोश में भर ले 


कहीं तेरे इंतज़ार उसकी जड़ें भी साथ न छोड़ दें

तुझसे मिलन की आस में बची हुई साँसों की डोर न तोड़ दे

तुझे कई हमराही मिल जाएँगे ज़िन्दगी के मोड़ पर

वह दरख़्त तो जीता ही था बस तुम्हें देखकर

आस जो उसकी है मत देना तुम तोड़ कहीं

जा जाकर मिल आ एक आख़री बार ही सही

बातें सब उसे बता आ जो अब तक रही अनकही

एक बार तो लौट के आ और आगोश में भर ले 


आज तो न कोई भूले-भटके भी उसकी तरफ जाता 

न ही प्यार से उसकी बाँहों में झूल कर खुश होता 

 अब ना कोई यहाँ आकर पक्षियों संग उड़ान भरता 

और न कोई टोली बनाकर नए -नए खेल रचाता 

अब वह भी तुम्हारे इंतज़ार में मुरझा-सा गया है

 उस बूढ़े पिता की तरह जो परदेस गए बेटे की आस में

धीरे -धीरे परन्तु दिन-ब-दिन खत्म-सा हो रहा है

एक बार तो लौट के आ और आगोश में भर ले ।



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