दर्दे समंदर
दर्दे समंदर
1 min
199
एहसासों की कश्तियां है तैर रही,
दर्द के समंदर में।
कोई बताए ज़माने को नहीं खिलते फूल ,
जमीन ए बंजर में।
टूटे अरमानों का बोझ है इतना की डर लगता है,
कहीं हम डूब ना जाए दर्द ए समंदर में।
कैसी किस्मत है हमारी बेदर्द,
खड़ी कर रखी है इसने हमारे चारो ओर एक घुटन की चारदीवारी।
आस नही बाकी अब मुझ में कोई,कुछ ऐसी टूट सी गई हूँ ,
जैसे दर्द ए समंदर को मैं पूरा पी सा गई हूं।