दोहे - गुरु की महिमा
दोहे - गुरु की महिमा
गुरुजनों की महिमा का, कैसे करूँ बखान।
मुझ मूरख अज्ञानी को, दिया ज्ञान का दान॥ (1)
कटु वचन गुरु देव के, औषध होत समान।
भला शिष्य का ही निहित, बात खरी ये जान॥ (2)
गुरु चरणों की छाँव में, मनवा पावे चैन।
उनके सत-उपदेश से, खुल जाते हैं नैन॥ (3)
इस मिथ्या संसार में, सच्ची है ये बात।
सही रास्ता दिखलाता, गुरु हमको दिन-रात॥ (4)
सूरज भी थक हार के, हो जाता है पस्त।
ज्ञानी गुरु की रोशनी, कभी न होती अस्त॥ (5)
हरि को पाने मैं चला, राह दिखी ना कोय।
धन्यवाद गुरु आपका, ज्ञान दिया जो मोय॥ (6)
गुरु की पूजा के बिना, सफल न कोई काज।
इस छोटी सी बात को, गाँठ बाँध लो आज॥ (7)